काजर की कोठरी
काजर की कोठरी (उपन्यास) : देवकीनन्दन खत्री
काजर की कोठरी : खंड-1
संध्या होने में अभी दो घंटे की देर है मगर सूर्य भगवान के दर्शन नहीं हो रहे , क्योंकि काली-काली घटाओं ने आसमान को चारों तरफ से घेर लिया है। जिधर निगाह दौड़ाइए मजेदार समा नजर आता है और इसका तो विश्वास भी नहीं होता कि संध्या होने में अभी कुछ कसर है।
ऐसे समय में हम अपने पाठकों को उस सड़क पर ले चलते हैं जो दरभंगे से सीधी बाजितपुर की तरफ गई है।
दरभंगे से लगभग दो कोस के आगे बढ़कर एक बैलगाड़ी पर चार नौजवान और हसीन तथा कमसिन रंडियाँ धानी, काफूर, पेयाजी और फालसई साड़ियाँ पहिरे मुख्तसर गहनों से अपने को सजाए आपुस में ठठोलपन करती बाजितपुर की तरफ जा रही हैं। इस गाड़ी के साथ-ही-साथ पीछे-पीछे एक दूसरी गाड़ी भी जा रही है, जो उन रंडियों के सफरदाओं के लिए थी। सफरदा गिनती में दस थे, मगर गाड़ी में पाँच से ज्यादे के बैठने की जगह न थी, इसलिए पाँच सफरदा गाड़ी के साथ-ही-साथ पैदल जा रहे थे। कोई तंबाकू पी रहा था, कोई गाँजा मल रहा था, कोई इस बात की शेखी बघार रहा था, कि ‘फलाने मुजरे में हमने वह बजाया कि बड़े-बड़े सफरदाओं को मिर्गी आ गई!’ इत्यादि। कभी-कभी पैदल चलनेवाले सफरदा गाड़ी पर चढ़ जाते और गाड़ीवाले नीचे उतर आते, इसी तरह अदल-बदल के साथ सफर तै कर रहे थे। मालूम होता है कि थोड़ी ही दूर पर किसी जिमींदार के यहाँ महफिल में इन लोगों को जाना है, क्योंकि सन्नाटे मैदान में सफर करते समय संध्या हो जाने से इन्हें कुछ भी भय नहीं है और न इस बात का डर है कि रात हो जाने से चोर-चुहाड़ अथवा डाकुओं से कहीं मुठभेड़ न हो जाए।
बैल की किराची गाड़ी चर्खा तो होती ही है, जब तक पैदल चलनेवाला सौ कदम जाए तब तक वह बत्तीस कदम से ज्यादे न जाएगी। बरसात का मौसिम, मजेदार बदली छाई हुई, सड़क के दोनों तरफ दूर-दूर तक हरे-हरे धान के खेत दिखाई दे रहे हैं, पेड़ों पर से पपीहे की आवाज आ रही है, ऐसे समय में एक नहीं बल्कि चार-चार नौजवान, हसीन और मदमाती रंडियों का शांत रहना असंभव है, इसी से इस समय इन सभों को चीं-पों करती हुई जानेवाली गाड़ी पर बैठे रहना बुरा मालूम हुआ और वे सब उतरकर पैदल चलने लगीं और बात-की-बात में गाड़ी से कुछ दूर आगे बढ़ गईं। गाड़ी चाहे छूट जाए, मगर सफरदा कब उनका पीछा छोड़ने लगे थे? पैदलवाले सफरदा उनके साथ हुए और हँसते -बोलते जाने लगे।
थोड़ी ही दूर जाने के बाद इन्होंने देखा कि सामने एक सवार सरपट घोड़ा फेंके इसी तरफ आ रहा है। जब वह थोड़ी दूर रह गया तो इन रंडियों को देखकर उसने अपने घोड़े की चाल कम कर दी और जब उन चारों छबीलियों के पास पहुँचा तो घोड़ा रोककर खड़ा हो गया। मालूम होता है कि ये चारों रंडियाँ उस आदमी को बखूबी जानती और पहिचानती थीं, क्योंकि उसे देखते ही वे चारों हँस पड़ी और छबीली जो सबसे कमसिन और हसीन थी, ढिठाई के साथ उसके घोड़े की बाग पकड़कर खड़ी हो गई और बोली, ”वाह वाह! तुम भागे कहाँ जा रहे हो? बिना तुम्हारे मोती !”
‘मोती’ का नाम लिया ही था कि सवार ने हाथ के इशारे से उसे रोका और कहा, ”बाँदी! तुम्हें हम बेवकूफ कहें या भोली?” इसके बाद उस सवार ने सफरदाओं पर निगाह डाली और हुकूमत के तौर पर कहा, ‘तुम लोग आगे बढ़ो।’
अब तो पाठक लोग समझ ही गए होंगे कि उस छबीली रंडी का नाम बाँदी था, जिसने ढिठाई के साथ सवार के घोड़े की लगाम थाम ली थी और चारों रंडियों में हसीन और खूबसूरत थी। इसकी कोई आवश्यकता नहीं कि बाकी तीन रंडियों का नाम भी इसी समय बता दिया जाए, हाँ उस सवार की सूरत-शक्ल का हाल लिख देना बहुत जरूरी है।
kashish
05-Mar-2023 02:52 PM
nice
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Babita patel
21-Feb-2023 03:34 PM
nice
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Chetna swrnkar
19-Jul-2022 09:40 PM
Nice 👍
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